दूसरा अधिनियम:
इसे Contract Farming भी कहा जा रहा हैं। इसके अनुसार किसान फसल का contract कर सकता हैं। उदाहरण से समझते हैं मान लो आपका कपड़ा सिलने का काम हैं और एक व्यक्ति आपके पास आता हैं वो आपसे कहता हैं कि मुझे 50 shirts सिलवानी हैं तो आपने 50 shirts सिलने का contract ले लिया और agreement कर लिया कि कीमत क्या होगी और कब shirts की डिलीवरी होगी। दूसरी ओर आप सिर्फ shirts सिलते हैं और बाजार में बेचते हैं वो भी सिर्फ कुछ निर्धारित जगह (APMC)और मूल्य (MSP)पर। लेकिन अगर आपको किसी स्कूल/कॉलेज की यूनिफार्म सिलने का contract मिले तो आप लेंगे या नहीं। ये आप स्वयं तय कीजिये।
इस तरह, इस अधिनियम के अनुसार किसान किसी से contract कर सकते कि उसकी डिमांड पर किसान कौन सी फसल पैदा करे और किस मूल्य पर फसल खरीदी/बेची जाएगी। किसान agreement कर सकते हैं कि sponsor किसान से कौन सी फसल खरीदेगा और क्या क्या सर्विस देगा। Agreement में फसल के रेट भी फिक्स किये जा सकते हैं या minimum रेट फिक्स कर सकते है। फसल की डिलीवरी देने के तीन दिन में payment देना होगा।
यहां पर समस्या क्या हैं कि हमारे देश में किसान ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और ना ही कानूनी दाव पेंच भी नहीं जानते हैं। इसलिए किसानों को डर हैं कि sponsor अपने बड़े बड़े वकीलों के द्वारा किसान को agreement में फंसा सकता हैं। हालाकि अधिनियम में लिखा हैं कि सरकार एक model contract provide करवा सकती हैं। अच्छा होता यदि अगर लिखा होता कि सरकार model contract provide करवाएगी। जिसे भरकर किसान और sponsor को sign करने हैं।
एक बात बहुत आपने सुनी होगी कि किसान की जमीन चली जाएगी, जबकि इस अधिनियम में साफ साफ लिखा हैं कि किसी भी दशा में चाहे sponsor को कितना भी नुकसान हो जाये किसान की जमीन को agreement की शर्त में नहीं रखा जाएगा और यदि अगर रखा गया तो agreement खारिज हो जाएगा। ना ही sponsor किसान की जमीन पर कोई स्थायी structure बना सकता हैं। हां, यदि दोनों की मर्जी हो तो बना सकते हैं लेकिन contract खत्म होने पर sponsor को वो structure अपने खर्चे से हटवाना पड़ेगा और यदि नहीं हटवाता हैं तो वो structure किसान की संपत्ति हो जायेगी। आगे हैं force majeure का क्लॉज़ भी इस अधिनियम में रखा गया हैं: मतलब यदि किसान किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से agreement की शर्त पूरी नहीं कर पाता हैं तो किसान का कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। अगर कोई dispute जाता हैं तब उस स्थिति में एक महीने के भीतर SDM/ADM/DM के पास सुनवाई होगी। सरकार का कहना है कि कोर्ट का प्रावधान इसलिए नहीं रखा क्योंकि वहाँ किसानों का समय और पैसा बहुत लग जायेगा। जबकि किसानों की माँग हैं कि कोर्ट कर प्रावधान होना चाहिए। सुनवाई में यदि sponsor की गलती हुई तब sponsor को agreement में तय हई राशि का 1.5 गुना देगा। जबकि दूसरी ओर अगर किसान की गलती होगी तो किसान पर कोई पेनाल्टी नहीं होगी सिर्फ जो sponsor का पैसा खर्च हुआ हैं वही देना होगा।
MSP (न्यूनतम मूल्य समर्थन): MSP सिर्फ 23 फसलों पर लागू होता हैं। सब्जियों, फलों, डेरी प्रोडक्टस आदि पर MSP लागू ही नहीं होता। छोटे किसान होने की वजह से देश में अधिकतर किसानों को MSP का लाभ ही नहीं मिलता। इसलिए आप देख रहे हैं कि आंदोलन पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में ही ज्यादा दिखाई दे रहा हैं।
इस अधिनियम में MSP का कही कोई जिक्र नहीं हैं और किसानों को लग रहा हैं कि सरकार MSP खत्म करके किसानों को प्राइवेट मंडियों के भरोसे छोड़ देगी। इसलिए किसान कह रहे है कि MSP का नियम बना कर संसद से पास करवा कर दो। जबकि सरकार का कहना हैं कि MSP संसद से पास ही नहीं होती यह सिर्फ सरकार का नोटिफिकेशन होता हैं और हम वैसे ही रखेंगे। आगे सरकार का कहना हैं कि जब कही जिक्र ही नहीं हैं तो हम खत्म कैसे कर देंगे जो चलता आ रहा हैं वही चलेगा और किसानों का कहना हैं हम भी तो ये ही कह रहे हैं कि MSP का जिक्र ही नहीं हैं।
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